शनिवार, 19 सितंबर 2015

यह भीगा-भीगा मौसम

यह भीगा-भीगा मौसम,
यह भीगी-भीगी रात,
अक्सर तन्हाई में तुम,
आ जाते हो याद.

वो तेरी रेशमी जुल्फें,
वो चांदनी-चांदनी रातें,
हम दोनों मिलकर जब,
करते थे दिल की बातें,
हर बीता लम्हा दिल को,
तड़पा के गुज़र जाता है,
मैं कैसे भूलूं यारा ,
वो अपनी हसीं मुलाकातें,
यह भीगा-भीगा............
अक्सर.........................

वो तेरी हंसी का सरगम,
वो तेरी वफ़ा का जादू,
दिल  मेरा धड़क कर यारा,
हो जाता था बेकाबू.
हर एक अदा तेरी,
मेरे दिल में बसी है हमदम,
कायम है मेरे दिल पर,
ऐ यार तेरा जादू.
यह भीगा-भीगा............
अक्सर.........................
मैं नगमे-वफ़ा सारे,
तेरे नाम लिखा करता हूँ,
तुझे खोकर भी दिलबर,
तेरी बात किया करता हूँ.
मुझे अब भी यकीं है तुझ पर,
मुझे अब भी भरोसा है,
मैं आज भी अक्सर यारा,
तेरी राह तका करता हूँ.
यह भीगा-भीगा............
अक्सर.........................
                                                            

सोमवार, 1 जून 2015

..........भूकंप की फसल.......

चित्र साभार-----http://i.ndtvimg.com/i/2015-04/nepal-quake-broken-road_650x400_41429949851.jpg
दिल हुआ बेकरार क्‍या कीजे,
हर तरफ है दरार क्‍या कीजे।
छोड़कर घर-दुकान सब अपना,
हो गए हैं फरार क्‍या कीजे।
यूं तो हम तीसमार खान हैं पर,
यह है कुदरत की मार क्‍या कीजे।
कर लें तौबा गुनाह से अपने,
दिन बचे हैं दो-चार क्‍या कीजे।
जुल्‍म से हिल रही है यह धरती,
बढ़ रहा अत्‍याचार क्‍या कीजे।
उसको आना है गर तो आएगा,
बैठकर इंतजार क्‍या कीजे।
‘राज’जीना न छोड़ना हरगिज,
हादसे हैं हजार क्‍या कीजे।

गुरुवार, 14 मई 2015

तिश्‍नगी


आके तेरे दर पे अपनी बेबसी अच्छी लगी,
दिल ये गम का घर बना तो बंदगी अच्छी लगी।
मुझसे ना पूछो के मेरे हमसफर कैसे मिले,
बस समझ लो दोस्ती से दुश्मनी अच्छी लगी।
आशिकी के रास्ते में दिल चिरागों सा जला,
मिट गए हम प्यार में पर आशिकी अच्छी लगी।
हर सितम बस इसलिए उस संगदिल का सह गए,
उसके चेहरे पर नुमाया सी हंसी अच्छी लगी।
जल रहा है आशियां मेरा तो कोई गम नहीं,
रोशन है हमसाया का घर तो रोशनी अच्छी लगी।
जाम उसके हाथ में और प्यास मेरे होठों पर,
आज मुद्दत की ये अपनी तिश्‍नगी अच्छी लगी।
दिल नहीं बहला कभी रंगीन महफिल में भी 'राज',
वो मिला तब जाके मुझको जिंदगी अच्छी लगी।

रविवार, 12 अप्रैल 2015

जिंदगी की बात.

कोई बताये कैसे करें हम  ख़ुशी की बात,
रूठी है जब ख़ुशी तो करें क्या ख़ुशी की बात. 
घर के चिराग से है जला मेरा आशियाँ ,
अल्लाह वास्ते न करो रौशनी की बात. 
वो बन के दोस्त मेरा सकूँ-चैन ले गया,
 डरता हूँ अब तो  करते हुए  दोस्ती  की बात. 
तुमसे बिछड़ के जी नहीं पाएं हैं एक पल,
मु‍द्दत हुई है हमको किए जिंदगी की बात.
मरते हैं रोज हम तो कई बार दोस्‍तों,
फिर करके क्‍या करेंगे भला खुदकुशी की बात.
उल्‍फत में हमने खाए हैं इतने फरेब 'राज',
बेमानी हो गई है वफा, आशिकी की बात.

मंगलवार, 31 मार्च 2015

यादों को तेरी


हर सिम्‍त यारा हमने तुमको ही पाया है,
यादों को तेरी हमने दिल में बसाया है।
बस तुम ही रहते हो हर पल हमारे साथ,
दिल पर हमारे यारा तेरा ही साया है।
अक्‍सर ही खुद को भी मैं भूल बैठा हूं ,
जब भी सनम मैंने तुमको भुलाया है।
चेहरे हजारों गुजरे हैं मेरी नजरों से,
नगमा तुम्‍हारा ही हमने तो गाया है।
यादों से तेरी हम करते हैं दिल की बात,
यादों को हाल अपना हमने सुनाया है।

रविवार, 1 मार्च 2015

तुम्हारी याद सताती है


 दिल को हर पल यार तुम्‍हारी याद सताती है,
 लाख भुलाऊं , याद तुम्‍हारी हर पल आती है।
माना मेरे हाथों में , नहीं तुम्‍हारा हाथ,
तन्‍हाई में भी रहती है पर याद तुम्‍हारी साथ,
याद तुम्‍हारी बीते पल के नगमे गाती है,
लाख भुलाऊं , याद तुम्‍हारी हर पल आती है।
लब तो रहते हैं खामोश , दिल बेचारा रोता है,
महफिल कोई भी हो यारा जिक्र तुम्‍हारा होता है,
हर मौसम हर रूत में यारा, याद की बदली छाती है,
लाख भुलाऊं , याद तुम्‍हारी हर पल आती है।
अपनी फिक्र नहीं है लेकिन ख्‍याल तुम्‍हारा है,
तुमसे बिछड़ के दीवानों सा हाल हमारा है, 
तूफां में भी रोशन यारा, तेरी याद की बाती है,
लाख भुलाऊं , याद तुम्‍हारी हर पल आती है,
दिल को हर पल यार तुम्‍हारी याद सताती है

बुधवार, 18 फ़रवरी 2015

दिल है आईना


भूलकर भी न उछालो इसको,
दिल है आईना संभालो इसको।
टूट जाए तो नहीं जुड़ता है,
हो सके गर तो बचा लो इसको।
दिल को कदमों में न रखिए हरगिज,
गर रखा है तो उठा लो इसको।
रू-बरू उनके है खो जाता दिल,
हुस्‍न वालों से छुपा लो इसको।
दिल के खाने को न रखिए खाली,
उसकी यादों से सजा लो इसको।

शुक्रवार, 13 फ़रवरी 2015

प्यार में जीना


प्यार में जीना,प्यार में मरना,
प्यार बिना क्या जीकर करना।
प्यार की खुशबू  से है यारों,
दिल की धड़कन,सांस का चलना।
प्यार से दुनिया है गर्दिश में,
शम्सो-कमर का चलना,चमकना।
प्यार से कुदरत में रंगत है ,
हवा की सर-सर, कली का खिलना।
प्यार में बहता नहीं लहू है ,
प्यार नई करता है रचना।
 प्यार किया तो प्यार जता दो,
इजहार में देर न करना।
प्यार में रहकर दूर सनम से,
तय है दिल का 'राज' तड़पना।

रविवार, 8 फ़रवरी 2015

चाँद का दीदार


चाँद का जब मुझे दीदार नज़र आता है,
रास्ता इश्क का गुलज़ार नज़र आता है.
मेरी कोशिश,मेरी ख्वाहिश,मेरा मकसद यारा,
तेरी जुल्फों में गिरफ्तार नज़र आता है.
हुस्न के नाजो-अदा की है निराली दुनिया,
उनकी ना-ना में भी इकरार नज़र आता है.
याद आता है सफ़र में जो तुम्हारा चेहरा,
राह मुश्किल में भी हमवार नज़र आता है.
मैंने माना के ज़माना यह हसीं है लेकिन,
तू नहीं है तो यह बेकार नज़र आता है.
तुझसे रिश्ता नहीं यूँ ही के भुला दूं तुझको,
दिल का तुमसे ही जुड़ा तार नज़र आता है.
हाल क्या अपना बताऊँ,तू समझ ले कासिद,
आँख खोलूँ तो वह हर बार नज़र आता है.
चश्मे-उल्फत में अजब जोर है देखा मैंने,
लाख पर्दा हो मेरा यार नज़र आता है.
मुस्करा कर न चुरा राज से नज़रें अपनी,
तेरी आँखों में ही संसार नज़र आता है.

शुक्रवार, 6 फ़रवरी 2015

हवा सियासत की

चल रही है हवा सियासत की,
कौन बातें करे मोहब्‍बत की।
दोस्‍त सारे बदल गए आखिर,
कुछ हवा ऐसी है अदावत की।
बेअसर उन पे आरजू-मिन्‍नत,
बात हो जाए अब बगावत की।
दर्दे-इंसानियत से खाली हैं,
बात करते हैं जो इबादत की।
आम इंसां से दूर रहते हैं,
 दिल में ख्‍वाहिश है पर इमामत की।
बात इंसाफ की न कर पाए,
क्‍या जरूरत है इस सहाफत की।
काम नाअहल पा रहे हैं अब,
क्‍या घड़ी आ गई कयामत की।
है गए दौर की मगर फिर भी,
बात हो जाए कुछ नजाकत की।
सबको मालूम है सवाब मगर,
किसको फुर्सत है अब अयादत की। 
राजतसलीम अब तो कर ही लो,
कद्र होती नहीं शराफत की।

गुरुवार, 15 जनवरी 2015

हवाओं में ज़हर.


ज़िन्दगी मेरी है यारों मुख़्तसर,
 आपकी मर्ज़ी बनायें रोज़ घर.
  आप चाहे लाख तदबीरें करें,
  लौट पायेगी नहीं गुजरी सहर.
  हमने उनके हर सितम हंसकर सहे,
  हम ही ठहराए गए मुजरिम मगर.
  आइए पौधे लगायें प्यार के,
  घुल गया है अब हवाओं में ज़हर.
   मज़हबो-फिरका में है जबसे बंटा,
   जल रहा है दोस्तों सारा शहर.

जख्म दिल के




    जहर से कुछ भरे भी होते हैं‚
    लोग थोड़े बुरे भी होते हैं।
    वक्त पर सब खड़े नहीं होते‚
    दोस्त कुछ तो खरे भी होते हैं।
    जो हैं कहते के हम नहीं डरते‚
    वह यकीनन डरे भी होते हैं।
    गुफ्तगू हो तो जिंदा मत समझो‚
    उनमें कुछ तो मरे भी होते हैं।
    दोस्त सबको समझना ठीक नहीं‚
    भेस दुश्मन धरे भी होते हैं।
    वक्त के साथ सब नहीं भरते,
    जख्म दिल के हरे भी होते हैं।
    ‘राज’ करते हैं जो बड़ी बातें‚
    लोग ऐसे गिरे भी होते हैं।