शुक्रवार, 20 अप्रैल 2018

तेरी यादों के पन्ने


मैं यादों के समंदर में ,
जो डूबा हूँ तो ज़िंदा हूँ।
तुम्हारे ज़िक्र की तस्बीह,
पढ़ता हूँ तो ज़िंदा हूँ।
मैं अक्सर रात में तन्हा,
तेरी तस्वीर तकता हूँ,
कभी तुमने लिखे थे जो,
वही तहरीर तकता हूँ,
तुम्हारे बाद ये थोड़े, 
सहारे हैं तो ज़िंदा हूँ।
तुम्हारे बाद भी जाने,
है रिश्ता क्या तेरे घर से,
नहीं हो तुम मगर फिर भी,
गुज़रता हूँ तेरे दर से,
तेरी गलियों,तेरे कूचे ,
में चलता हूँ तो ज़िंदा हूँ।
कभी मुझको हंसाते हैं,
कभी मुझको रुलाते हैं,
तुम्हारे साथ गुज़रे पल,
बहुत ही याद आते हैं,
तेरी यादों के पन्ने जो,
पलटता हूँ तो ज़िंदा हूँ।