सोमवार, 29 अप्रैल 2019

क्या पता












कौन जीता कौन हारा क्या पता,
किसने कैसे दिन गुज़ारा क्या पता।
जब तलक गोता लगाया जाए ना,
है समंदर कितना खारा क्या पता।
क़त्ले-पहलू सबने देखा है मगर,
किसने पहलू को है मारा क्या पता।
उनको है सबकुछ खबर,लेकिन नजीब
है कहाँ जाने बेचारा क्या पता।
कितना मुश्किल है यहां होना कफील,
कौन-सी लग जाए धारा क्या पता।
आज सबकी आसिफा खतरे में है,
टूट जाये किसका तारा क्या पता।
फ़र्ज़ पर मोहसिन मियाँ सस्पेंड हैं,
कर दिया किसने किनारा क्या पता।
बारी-बारी हो गए मुल्ज़िम बरी,
इसमें है किसका इशारा क्या पता।
नौकरी हासिल नहीं जिनको हुई,
कौन है उनका सहारा क्या पता।
*नोटबन्दी में लुटे परिवार का,
हो रहा कैसे गुज़ारा क्या पता।
खौफ का धंधा नहीं है कामयाब,
कब बदल जाएगा नारा क्या पता।
आंख में आँसू नहीं तो क्या हुआ,
है वो रोया कितना सारा क्या पता।
बेखबर बैठे हैं घर में हम तो "राज"
है कहाँ नफरत का पारा क्या पता।
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★ ताकि सनद रहे - नोटबन्दी में लुटे परिवार का अर्थ आप यहां काला धन रखने वालों से न लगाएँ, क्योंकि काला धन वाला कोई न पकड़ा गया न क़तार में दिखा। इस शेर में उस ग़रीब परिवार की तरफ इशारा है,जिसने क़तार में अपने प्रियजनों,घर के मुखिया को खो दिया और उनको सरकार से एक पैसे का मुआवज़ा नहीं मिला। याद रहे क़तारों में मरने वाले उद्योगपति,पूंजीपति,बड़े सरकारी अधिकारी, मंत्री, नेता आदि नहीं थे,आम आदमी थे,जो अपनी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए क़तार में लगे थे। यह वजाहत इसलिए कि जब नोटबन्दी का इतिहास लिखा जाए तो कुछ ग़लत न लिख जाए।