रविवार, 12 अप्रैल 2015

जिंदगी की बात.

कोई बताये कैसे करें हम  ख़ुशी की बात,
रूठी है जब ख़ुशी तो करें क्या ख़ुशी की बात. 
घर के चिराग से है जला मेरा आशियाँ ,
अल्लाह वास्ते न करो रौशनी की बात. 
वो बन के दोस्त मेरा सकूँ-चैन ले गया,
 डरता हूँ अब तो  करते हुए  दोस्ती  की बात. 
तुमसे बिछड़ के जी नहीं पाएं हैं एक पल,
मु‍द्दत हुई है हमको किए जिंदगी की बात.
मरते हैं रोज हम तो कई बार दोस्‍तों,
फिर करके क्‍या करेंगे भला खुदकुशी की बात.
उल्‍फत में हमने खाए हैं इतने फरेब 'राज',
बेमानी हो गई है वफा, आशिकी की बात.