रविवार, 8 फ़रवरी 2015

चाँद का दीदार


चाँद का जब मुझे दीदार नज़र आता है,
रास्ता इश्क का गुलज़ार नज़र आता है.
मेरी कोशिश,मेरी ख्वाहिश,मेरा मकसद यारा,
तेरी जुल्फों में गिरफ्तार नज़र आता है.
हुस्न के नाजो-अदा की है निराली दुनिया,
उनकी ना-ना में भी इकरार नज़र आता है.
याद आता है सफ़र में जो तुम्हारा चेहरा,
राह मुश्किल में भी हमवार नज़र आता है.
मैंने माना के ज़माना यह हसीं है लेकिन,
तू नहीं है तो यह बेकार नज़र आता है.
तुझसे रिश्ता नहीं यूँ ही के भुला दूं तुझको,
दिल का तुमसे ही जुड़ा तार नज़र आता है.
हाल क्या अपना बताऊँ,तू समझ ले कासिद,
आँख खोलूँ तो वह हर बार नज़र आता है.
चश्मे-उल्फत में अजब जोर है देखा मैंने,
लाख पर्दा हो मेरा यार नज़र आता है.
मुस्करा कर न चुरा राज से नज़रें अपनी,
तेरी आँखों में ही संसार नज़र आता है.

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