दिल है ज़ख़्मी तो आँख पुरनम है,
तू नहीं है मगर तेरा गम है.
अब कहीं भी सुकूँ नहीं मिलता,
आज दिल का अजीब मौसम है.
ठीक है उफ़ न हम करेंगे मगर,
कैसे कह दें के दर्दे-दिल कम है.
ज़ख्मे-उल्फत जो भर सके यारों,
इस जहाँ में क्या ऐसा मरहम है.
प्यार है जुर्म इसका इल्म न था,
ये खता है तो फिर सजा कम है.
यूँ तो मौसम तमाम आए-गए,
दिल में लेकिन खजां का आलम है.
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