सोमवार, 28 मार्च 2016

वो तो बस गया है ख्याल में.

 वो तो बस गया है ख्याल में.
मैं उलझ गया हूँ सवाल में,
मेरी ज़िन्दगी है बवाल में.
मेरे दोस्त भी नहीं पूछते,
मैं कहाँ हूँ और किस हाल में.
किसी दौर में मेरा नाम भी,
कोई टांकता था रुमाल में.
उसे कैसे दिल से निकालूँ मैं,
वो तो बस गया है ख्याल में.
वही सुबह-शाम,वही काम-धाम,
के ज़माना है किसी जाल में.
हुआ खुदगरज कुछ यूँ आदमी,
रही रौशनी न मशाल में.
वो खज़ाना से नहीं मुतमइन
मैं तो खुश हूँ रोटी व दाल में.

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